बाबा बटेसरनाथ कोई मनुष्य नहीं; बल्कि एक बूढ़ा बरगद है जिसके प्रति गाँव के लोगों की भावना वैसी ही है जैसी अपने किसी बड़े-बूढ़े के प्रति होती है; और इसीलिए वे लोग उस पेड़ को साधारण ‚बरगद‘ नाम से नहीं; बल्कि आदरसूचक ‚बाबा बटेसरनाथ‘ कहकर पुकारते हैं। यही बाबा बटेसरनाथ अपनी कहानी सुनाते-सुनाते पूरे गाँव की कहानी सुना जाते हैं; जिसकी कई पीढ़ियों के इतिहास के वे साक्षी रहे हैं. हिंदी में जनता के कवि नागार्जुन का एक अनूठा उपन्यास. ©Rajkamal Prakashan
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