भारतीय ग्रामीण जीवन और जनमानस की विभिन्न स्थितियों के अप्रतिम चितेरे; मुंशी प्रेमचंद विश्व विख्यात साहित्यकारों की पनकी में आते हैं. उनकी ये प्रतिनिधि कहानियां प्रायः पूरी दुनिया की पाठकीय चेतना का हिस्सा बन चुकी हैं. सुप्रसिध्ह प्रगतिशील कथाकार भीष्म साहनी द्वारा चयनित ये कहानियां भारतीय समाज और उसके स्वाभाव के जिन विभिन्न मसलो को उठती हैं; ‚आजादी‘ के बावजूद वे आज और भी विकराल हो उठे हैं; और जैसा कि भीष्म जी ने संकलन की भूमिका में कहा है कि ‚प्रेमचंद की मृत्यु के पचास साल बाद आज उनका साहित्य हमारे लिए एक चेतावनी के रूप में उपस्थित है. जिन विषमताओं से प्रेमचंद अपने साहित्य में जूझते रहे; उनमें से केवल ब्रिटिश शासन हमारे बीच मौजूद नहीं है; शेष सब तो किसी-न-किसी रूप में वैसी-की-वैसी मौजूद हैं. वस्तुतः प्रेमचंद ने हमारे साहित्य में जिस नए युग का सूत्रपात किया था; साहित्य को वे जिस तरह जीवन के निकट अथवा जीवन को साहित्य के केंद्र में ले आए थे; वह हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है.
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